खत देखते ही ज़र्द चेहरे पर खिंची सुर्ख लकीरें अस्थायी भाव की तरह गायब होने लगी।
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गाली की रचना में कोशिश करनी पड़ती है कि यह छोटी से छोटी हो, एक ही शब्दमें स्थायी या अस्थायी भाव को बंद कर सके.
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परंतु यह निर्विवाद रूप से सत्य है कि सुख जीवन का अस्थायी भाव है और आनंद प्राप्त होने पर यह जीवन का स्थायी भाव हो जाता है।
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और आपके प्रति भी कई तरह के स्थायी अस्थायी भाव हैं-मगर अभी रोकते हैं उन्हें व्यक्त होने को.... साथ साथ हैं हम भी डगर पर..... कभी आगे पीछे.....
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उनकी इस बिगडेल भावभंगिमा और ओजस्विता के अस्थायी भाव के पीछे शायद गुजरात के उपचुनावों में अभी-अभी मिली सफलता की अपार ख़ुशी थी या उनके अलायन्स पार्टनर नितीश-जदयू को बिहार के महराजगंज में मिली करारी हार का प्रतिशोधजनित आनंद, ये तो वक्त आने पर ही मालूम हो सकेगा किन्तु उनकी राष्ट्र निष्ठां की असलियत तो इस बैठक में साफ़ दिख गई है.
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जज्बये ब्लागिरी को सलाम! आपकी अध्यवसायिता,समर्पण,कठिन श्रम की आदत सभी से कुछ आतंकित तो बहुत कुछ प्रेरित भी हुआ हूँ! खुद से परिचित कराने के इस अनुष्ठान के समापन पर मैं भावों से आप्लावित हूँ-कई तरह के,उनमें एक तो शब्दों का सफ़र के प्रति कृतज्ञता भी है जिसने यह यग्य स्थल उपलब्ध किया है ऐसे अनुष्ठानों के लिए...और आपके प्रति भी कई तरह के स्थायी अस्थायी भाव हैं-मगर अभी रोकते हैं उन्हें व्यक्त होने को....साथ साथ हैं हम भी डगर पर.....कभी आगे पीछे.....